मुझसे छुपकर वो किसी और से मिल के आया है
वो बेवफ़ा तो नहीं है, शायद उसपे किसी भूत प्रेत का साया है ।।
आज कल मुझे सांसे अटक अटक कर क्यों आती है, अब समझ आया
हर बार उसने जूठी कसम खाई मेरी, हर बार सच छुपाया है ।।
इंसा था; रंग दिखाकर, मतलब जताकर, छोड़ के चला गया
जब ज़माने ने अपना रंग दिखाया, लौट कर आया है ।।
इश्क़ कब कहां किसी का मोहताज हुआ है
जिसे साथ निभाना हो, ज़माने से लड़कर निभाया है ।।
किसी ना नहीं रखा उसने एहसान, मेरा क्या रखता
मेरा नमक खाकर उसने मेरे ही ज़ख्मों पर लगाया है ।।
"प्रीत" क्या ग़म बयां करे, बस इतना समझ लीजे
मिट्टी से उठाकर उसने मुझे, फिर मिट्टी में मिलाया है ।।

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