खुदा है इश्क़; इबादत है इश्क़
पवित्र गीता है; आयत है इश्क़।।
इश्क़
बेवजह मुस्कुराना सिखाता है
रूठे हुए को मनाना सिखाता है
किसी को अपनाना सिखाता है
हक जताना सिखाता है ।।
इश्क़
हंसते हुए को रुला देता है
दर्दों को सहना सिखाता है ।।
मुश्किल होता है उन्हें भूलना
जिन्हें इश्क़ अपनाता है ।।
इश्क़
दिलों को जोड़ता है
फिर दिल तोड़ता है ।।
इश्क़
ज़माने की परवाह ना कर साथ निभाता है
कभी भरी महफ़िल में तनहा छोड़ता है ।।
इश्क़
दर्द है; सुकून है
सादगी है; जूनून है ।।
किसी की फ़िक्र करना इश्क़ है
किसी की याद में मरना इश्क़ है ।।
इश्क़ में
कोई किसी कि बेहद परवाह करता है
किसी को इसका असर नहीं होता है ।।
जिसे सबसे ज्यादा चाहो
अक्सर वही दर्द देता है ।।
इश्क़
महताब है; आफ़ताब है ।।
यह रात के चांद सा मन को प्रफुल्लित करता है
दोपहर के सूरज सा चिड़चिड़ाता है।।
इश्क़ चांद है;
इसमें खुद का कुछ नहीं
फिर भी अच्छा लगता है ।।
इश्क़ सूरज है
यह जलाता बहुत है
फिर भी ज़रूरी लगता है।।
जिस्मों के तलबगार इश्क़ को नचाते हैं
रूहानियत को इश्क़ नचाता है।।
इश्क़
लापरवाह को बेइंतेहा मिलता है
जिसे परवाह होती है उन्हें ही सताता है।।
बेइंतेहा इश्क़ (सच्चा इश्क़)
हर किसी की किस्मत में नहीं होता ।।
जिनकी किस्मत में होता है उन्हें क़दर नहीं होती ।।
इश्क़ में
उनकी हम बेहद फ़िक्र करते हैं
जिन्हें ज़रा भी फ़िक्र नहीं होती ।।
इश्क़
ताउम्र साथ निभाता है
ज़िंदगी मुकम्मल बनाता है ।।
इश्क़ में
मन भरने पर लोग बदल जाते हैं
धीरे धीरे बिछड़ जाते हैं ।।
नए नए इश्क़ में उन बिन कुछ अच्छा नहीं लगता
जब पुराना हो जाए उन्हें "प्रीत" अच्छा नहीं लगता ।।
इश्क़ में वक़्त चाहिए होता है
उनके लिए वक़्त ही वक़्त होता है
जो ज़रूरी होता है ।।
अगर कोई ज़रूरी ना हो
वक़्त हो कर भी वक़्त नहीं होता है ।।
इश्क़ में कोई पूरे दिन इंतजार में बैठा रहता है
जिसे इश्क़ ना हो बात करते करते भी चला जाता है ।।
समन्दर भर इश्क़ के बदले
यहां इक बूंद मिलता है।।
जो हद से ज़्यादा इश्क़ करे
वही पल पल मरता है ।।
.....प्रीत.....



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