वीरानियां कुछ इस कदर बढ़ गई कि भीड़ में भी तन्हां हैं हम ।।
फकत सांसे चल रही हैं जूठ कहते हैं लोग कि ज़िंदा हैं हम ।।
ये जो मंज़िल पर पहुंच गए मुसीबतें और बढ़ गई हैं 
कभी कभी लगता है सफ़र में ही अच्छे थे हम ।।
ये ज़ालिम दुनिया मतलब से लबालब है 
ख्वाबों की इक नई दुनिया बसाने चले हम ।।
यहां कौन किसका ताउम्र के लिए होता है 
बेवजह ही इश्क़ में बदनाम होते हैं हम ।।
सहर से कब शाम हो जाती पता नहीं चलता 
रोज़ रंग बदलती दुनिया वही बेरंग से हम ।।
....प्रीत.....

 
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