नारी शक्ति


कभी माँ; कभी बेटी ; कभी बहन ; कभी पत्नी
ना जाने कितने ही रूप में 
हर वक़्त वो जलती है।।
इक उसकी आतिश से ही 
घर - गृहस्ती रोशन होती है।।

जिम्मेदारियों के बोझ में 
अपनी आवाज़ दबोच देती है।।
आइने की तरह बिखर कर 
हर किसी को जोड़े रखती है।।

तन के भूगोल से परे 
उसका भी इक इतिहास है ।।
घर, रसोई , परिवार आदि की
गणित में उलझी रहती है।।

इक ऐसा सवाल है 
जिसका ना कोई जवाब है।।
कठपुतली बन कर 
सबके इशारों पर जीती रहती है।।

कितना कुछ कर के भी
हर वक़्त गर्दिश में रहती है।।
 बस इक गलती पर 
ज़माने भर के ताने सुनती है।।

खुद जलकर सूरज भांति 
औरों को रोशन करती है।।
नारी अपने आप में 
इक पूरी दुनिया होती है।।

नारी के होने से ही
जन्नत बनता अपना मकान है
वो हर रूप में खुदा होती है
हमें करना इनका सम्मान है।

खुद के अरमान श्मशान कर 
परिवार को संजोती है ।।
इक औरत वास्तव में योद्धा होती है।।