शायरी करा कीजे



 गुमनामी से बदनामी बेहतर है; यों बेवजह ना डरा कीजे।।
दुनिया जलती हुई शम़ां है; इसकी आतिश का मजा लीजे ।।



हर वक़्त कमाना अच्छा नहीं होता; कभी कभी खुद का खसारा कीजे ।।
आंखों में दफन  होते हैं कईं राज़; आंखों से बात करा कीजे।।



यादें ज़िंदा नहीं रहने देती; पुरानी संदूक ना खोला कीजे।।
हक़ीक़त हमें उलझा देती है; ख्वाबों में रहा कीजे।।



मंदिर तो सब जाते हैं; कभी मयखाने जाया कीजे ।।
दो चार जाम पीकर; होश को संभाला कीजे।।



इश्क़ अपने आप में महफ़िल है; कभी इसमें शिरकत कीजे।।
यह सभी को मयस्सर नहीं होता; इस बात को भी समझा कीजे।।



दिल में बात छुपा कर; गुमसुम ना रहा कीजे ।।
जो मुंह से ना कह पाओ कभी; तो शायरी करा कीजे।।




             ...प्रीत...