मैं भारत हूं |


प्राणों में उमड़ी थी ज्वाला
अभयदान भरने वाली ।।
भारत मां को सदियों के 
बंधन से रहित करने वाली ।।
कहां था प्राणों का मोह
लगे थे लक्ष्य साधने राम
बसी थी मां सीता की मूर्ति आंखों में 
उसी पर करते संधान।।
ऐसे ही भारत मां की मूर्ति बसाए आंखों में 
वे कितनी रैन जगे होंगे; 
वेदना बस छिपाए सांसों में ।।
गुमनामी का है यह जंगल
हम भूल गए वह परिवर्तन; 
जो शहीद हुए आजादी को
उन वीरों को शत शत नमन।।

गुलामी की जंजीरों ने 
भारत मां को बहुत रुलाया था
हम नाम नहीं बतला सकते 
किस किस ने धीर बंधाया था।।
थे अगस्त क्रांति के अग्रदूत
अविराम प्रगति के सृजनहार
भारत मां की आजादी को 
दिया जिन्होंने प्राणों को वार।।
आजादी की लहरों पर वे दीवाने बहते जाते थे
डूबेंगे या उतारेंगे ये बतला नहीं पाते थे।

अंग्रेजी हुकूमत को कुछ यों ललकारा था
अपना सब कुछ त्याग कर देश आजाद कराया था।।
सीनों पर गोली खाकर भी
उस रात जगे भारतवासी
संकीर्तन कर के आंहों का
तिरंगा फहराया था।।
अब स्वतंत्रता की यह वेला
भारत भूमि मानती है
जंगल जंगल जन मन मंगल
मां की चूनर लहराती है।।
लहरा के तिरंगा कहता है
इक चक्र हमेशा रहता है
जो कुर्बान हुए शहीदी में 
उनकी यह कहानी कहता है
नभ में यूं ही फहरूंगा मैं
वीरों का ऊंचा मस्तक हूं।।
अरिदल का संहारक हूं
जनमंगल हूं मैं भारत हूं।।
मैं भारत हूं मैं भारत हूं।।